Pravachan
प्रवचन एवं सत्संग :- वेदो पुराणों उपनिषदों महाग्रंथों में निहित ज्ञान को समझाकर उपदेश देना या किसी व्यक्ति या व्यक्ति समहू को सुमार्ग पर ले जाने का कार्य करना ही प्रवचन है।
1:- सनातन धर्म
वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'सदा बना रहने वाला', अर्थात जिसका न आदि है न अंत। सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है।
ॐ सनातन धर्म का प्रतीक चिह्न ही नहीं बल्कि सनातन परम्परा का सबसे पवित्र शब्द है।
प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव, कोटी वैष्णव, शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे। गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव, कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है।
कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की।
हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
2:-वैदिक साहित्य
वैदिक साहित्यसे तात्पर्य उस विपुल साहित्य से है जिसमें वेद, ब्राह्मण, अरण्यक एवं उपनिषद् शामिल हैं। वर्तमान समय में वैदिक साहित्य ही हिन्दू धर्म के प्राचीनतम स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला तथा विश्व का प्राचीनतम् स्रोत है।वेद(Ved) शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इसका अर्थ है ज्ञान होना। हिन्दू वेदों को अपौरुषेय या ईश्वर द्वारा रचित मानते है। उनकी दृष्टि में ये शाश्वत है।
श्री सेवा एस्ट्रो संस्था द्वारा वैदिक रीति से संपर्क करके कथा का आयोजन किया जा सकता है
शिव पुराण:-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिव पुराण का पाठ कराने से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, निःसंतान लोगों को संतान की प्राप्ति हो जाती है। अगर वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्याएं आ रही हैं तो वे समस्याएं दूर हो जाती हैं। व्यक्ति के समस्त प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन के अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विष्णु पुराण:-
विष्णु पुराण वेद तुल्य है, तथा सभी वर्ण के लोग इसका श्रवण कर सकते हैं। इस श्रेष्ठ पुराण के श्रवण पर मनुष्य धन, आयु, धर्म तथा विद्या को प्राप्त करता है।वह इस लोक में सुख भोगकर स्वर्ग में भी दिव्य सुखो का अनुभव करता है। तत्पश्चात भगवान विष्णु के निर्मल पद को प्राप्त करता है।
श्रीमद्भागवत कथा:-
श्रीमद्भागवत कथा सुनना और सुनाना दोनों ही मुक्तिदायिनी है तथा आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। इसके अलावा रोग-शोक, पारिवारिक अशांति दूर करने, आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली के लिए इसका आयोजन किया जाता है।
प्रभु श्रीराम कथा:-
प्रभु श्रीराम कथा का पाठ करने या सुनने से मनुष्य के सभी समस्या का समाधान बहुत आसनी से होता हुआ दिखता हैl भगवान राम का नाम स्वयं में एक महामंत्र है। राम नाम की महिमा अपरंपार है। इस अतिरिक्त राम नाम का मंत्र सर्व रूप मे ग्रहण किया जाता है । इस के जप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति सहज हो जाती है । अन्य नामो कि अपेक्षा राम नाम हजार नामों के समान है । राम मंत्र को तारक मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र के जपने से सभी दुःखों का अंत होता है।